‘हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी’

यह स्कूल के दौरान की बात है। हमारे घर में ‘राजस्थान पत्रिका’ अख़बार आया करता था। तब तक मैंने शे’र-ओ-शायरी के नाम पर सस्ती और ग्रीटिंग कार्ड में लिखी जाने वाली शाइरी ही पढ़ी थी। उन्हीं दिनों ‘राजस्थान पत्रिका’ के साथ किसी परिशिष्ट के तौर शाइरी की एक बुकलेट आई। मुझे उसमें सबसे ज़्यादा पसंद एक ग़ज़ल आई। उस समय मालूम भी नहीं था कि उसे ग़ज़ल कहेंगे या नज़्म या कुछ और। उसके कुछ मिसरे मुझे याद रहे और शाइर का नाम याद रहा—निदा फ़ाज़ली।