ईश्वर अनाम न रहे, इसीलिए देवता हैं

साहित्य हमें पानी नहीं देता, वह सिर्फ़ हमें अपनी प्यास का बोध कराता है। जब तुम स्वप्न में पानी पीते हो, तो जागने पर सहसा एहसास होता है कि तुम सचमुच कितने प्यासे थे।

सही नाम से पुकारने की कला

क्या लिखते हुए हम चीज़ों को उनके सही नाम से पुकारते हैं? चाहे गद्य हो या कविता—यह प्रश्न आत्ममंथन की माँग करता है। साहित्य में शब्द की ‘सत्ता’ और उसकी ‘संज्ञा’ की बराबर भूमिका होती है।

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