पहचान की ज़मीन पर

वीरू सोनकर के पास कविता में घूरकर देखने का ‘हुनर’ भले कम हो, साहस की कमी नहीं है। यह साहस ही इस कवि के लिए कविता में संभावनाएँ और दुर्घटनाएँ लेकर आता है। उसके भीतर का ग़ुस्सा संग्रह की तमाम कविताओं में मद्धम-मुखर दिखाई पड़ेगा।