रोज़-रोज़ मुक्तिबोध
उस कमरे में उस रात गहरी चली खोज में ताखे से झाँकती दिख पड़ती है एक बीड़ी और मैं साथी को आवाज़ लगाता हूँ कि आ गए हैं मुक्तिबोध। हम स्तुति-पाठ करते हैं—‘हम घुटने पर नशा-देवता (मुक्तिबोध ने नाश-देवता लिखा है) बैठ तुझे करते हैं वंदन—तेरे अग्निकणों से जीवन…’
By शायक आलोक
दिसम्बर 7, 2020