गद्य की स्वरलिपि का संधान
हिंदी के काव्य-पाठ को लेकर आम राय शायद यह है कि वह काफ़ी लद्धड़ होता है जो वह है; वह निष्प्रभ होता है, जो वह है, और वह किसी काव्य-परंपरा की आख़िरी साँस गोया दम-ए-रुख़सत की निरुपायता होता है। आख़िरी बात में थोड़ा संदेह हो भी तो यह मानने में क्यों कोई मुश्किल हो कि मनहूसियत उसमें निबद्ध होती है। वह डार्क और स्याह होता है। इसकी वजह क्या यह है कि हिंदी में कविताएँ ही अक्सर डार्क होती हैं।
By देवी प्रसाद मिश्र
जुलाई 8, 2022