किट्टू की कहानी

मुझे लगा था कि मुझे बग़ावत करनी होगी, जिसके लिए मैंने ख़ुद को तैयार भी कर लिया था। मैंने अपने दिमाग़ में कई आगामी बहसें जीत ली थीं। पर यह सब कुछ बस हो गया। क्या तुम्हारे साथ ऐसा हुआ है? जब तुम सोचो कि तुम्हें झुकना ही नहीं है, पर अचानक कोई लड़ाई ही न लड़नी पड़े।

मैंने सूरजमुखी होना चुना है

मैं जब अपनी उम्र के 29वें साल की दहलीज़ पर थी, तब मैंने अपने आपसे वादा किया था कि मैं अपने 30वें साल में वह नहीं रहूँगी जो मैं नहीं हूँ। अब प्रश्न यह है कि मैं हूँ ही कौन? मुझसे पहले बहुत सारे विद्वान इसका उत्तर खोज कर क़लम घसीट चुके हैं और उनकी गर्दा उड़ा देने वाली बातों पर अब किसी लाइब्रेरी में धूल जमी हुई है।

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