एक उपन्यास लिखने के बाद

उपन्यास के बारे में वैसे अब तक इतना कुछ कहा जा चुका है कि जब उसका—अपनी सीमा भर—मैंने अध्ययन किया, तब पाया कि सब कुछ बहुत विरोधाभासग्रस्त है। मैंने शोर के कंकड़-पत्थर, अल्फ़ाज़ों की चाँदी और ख़ामोशी के स्वर्ण से भरे हुए कितने ही उपन्यास देखे-पलटे-पढ़े। उन्होंने सामान्य और विशेष दोनों ही रूपों में मुझे प्रभावित और अंतर्विरोधयुक्त किया।

मैं जब भी कोई किताब पढ़ता हूँ

मैं जब भी कोई किताब पढ़ता हूँ तो हमेशा लाल रंग की कलम या हाईलाइटर साथ में रखता हूँ। जो भी कोई शब्द, पंक्ति या परिच्छेद महत्त्वपूर्ण लग जाए या पसंद आ जाए वहाँ बेरहमी से क़लम या हाईलाइटर चला देता हूँ—चाहे किताब कितनी भी महँगी और साफ़-सुथरी हो। हाँ, यह हरकत हमेशा केवल अपनी ही किताबों में करता हूँ। सफ़र तक के लिए भी जब किताब निकालता हूँ तो साथ में लाल क़लम या हाईलाइटर रखना नहीं भूलता। पढ़ते वक़्त कुछ बात मन में कौंधती है तो उसे भी उसी पृष्ठ के किनारे पर लिख डालता हूँ। ऐसा करते मैंने और भी लोगों को देखा है।

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