मैं विवेक के साथ क्षण को जीता हूँ

प्रियंवद (जन्म : 1952) समादृत साहित्यकार हैं। वह कथा और कथेतर तथा संपादन और सांस्कृतिक सक्रियता के मोर्चों पर अपनी मिसाल आप हैं। जीवितों के हिंदी कथा संसार में वह अकेले हैं जिनके पास सर्वाधिक स्मरणीय, उल्लेखनीय और चर्चित कहानियाँ हैं। आज उनका 70वाँ जन्मदिन है। उन्हें मंगलकामनाएँ देते हुए यहाँ प्रस्तुत है उनसे एक नई और विशेष बातचीत :

एक ख़त मैकॉले के नाम

श्रीमान मैकॉले साहब, आप मुझे नहीं जानते। जानेंगे भी कैसे? आपके और मेरे बीच वक़्त का फ़ासला बहुत ज़्यादा है। इसे घड़ी की सुइयों से नहीं नापा जा सकता। इस फ़ासले में काल के सैकड़ों भँवर हैं।

‘दिल्ली की साहित्य-मंडी से अब कुछ नहीं जन्मेगा’

वह कहानियाँ, उपन्यास और इतिहास लिखते हैं। लेकिन इधर के उनके रचनाकर्म में बतौर एक कथाकार और इतिहासकार दोनों से ही अलग एक नए क़िस्म की बेचैनी है। इसके लिए उन्होंने विधागत कुछ नए प्रारूप गढ़े हैं जिनके माध्यम से वह अपनी साहित्य-चिंताओं के साथ साहित्य की राजनीति और उसमें आई गिरावट को दर्ज कर रहे हैं।

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