एक मुकम्मल तस्वीर का सफ़र

साल 2019 की फ़्रांसीसी फ़िल्म ‘पोर्ट्रेट ऑफ़ ए लेडी ऑन फ़ायर’ इस सदी की उन चुनिंदा फ़िल्मों में से एक है, जिनका ज़िक्र ज़रूरी है। इस फ़िल्म की सबसे ख़ूबसूरत बात यह है कि आप कोई भी कोण, कोई भी दृश्य या कोई भी स्पॉट उठा लें; यह फ़िल्म ज़ेहन पर चित्रकारी-सा नक़्श उभारती है। इस फ़िल्म को कान फ़िल्म समारोह में 2019 की सर्वश्रेष्ठ पटकथा के सम्मान से नावाज़ा गया। इसके साथ ही सेलीन सियम्मा को यूरोपीय फ़िल्म समारोह में 2019 की सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखक का पुरस्कार दिया गया।

जहाँ लड़की होना ही काफ़ी है

मुझे बचपन से ही करौली की धर्मशालाओं और अपने शहर की महिला कॉलेजों में कोई ज़्यादा फ़र्क़ समझ में नहीं आया। मुझे लगता रहा कि धर्मशालाओं की तरह ये कॉलेज भी धर्मार्थ ही खुलवा दिए गए थे, जिनसे कोई भी उम्मीद रखना गुनाह-ए-अज़ीम-सा था

एक पुरुष की देह को लेकर

बहुत याद करने पर भी और बहुत मूड़ मारने पर भी पिछले दिनों ठीक-ठीक यह याद नहीं आया कि उस दिन हमारे घर में कौन-सा आयोजन था। हाँ, यह ख़ूब याद है कि उसी बरस किसी महीने दादी मरी थीं; पर यह याद नहीं आता कि वह दिन उनका दसवाँ था, तेरहवीं थी, होली थी या बरसी थी…पर उनकी मृत्यु से ही जुड़ा कोई आयोजन था घर में।

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