फूँक-फूँक कर लिखी गई एक किताब

मुझे होश तब आया जब सामने की गाड़ी में हरकत हुई और दृश्य आगे बढ़ने लग गया। मैं वक़्त में अभी ठहरने ही पाई थी कि जाम घुटनों के बल सरकने लगा। यह धोखा था। पर नहीं भी था।

‘दुनिया को लेकर मेरा अनुभव बहुत अजीब है’

विष्णु खरे (9 फ़रवरी 1940–19 सितंबर 2018) को याद करते हुए यह याद आता है कि वह समादृत और विवादास्पद एक साथ हैं। उनकी कविताएँ और उनके बयान हमारे पढ़ने और सुनने के अनुभव को बदलते रहे हैं।

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