शराबी क़ौम पर कुछ नोट्स
शराबियों को एक ‘अस्मितामूलक’ इकाई/क़ौम (आइडेंटिटी) के रूप में देखना चाहिए कि नहीं? सुनने में यह अतिरंजित लग सकता है, लेकिन क्रूर सच्चाइयाँ अक्सर ही अतिरंजित लगती हैं।
शराबियों को एक ‘अस्मितामूलक’ इकाई/क़ौम (आइडेंटिटी) के रूप में देखना चाहिए कि नहीं? सुनने में यह अतिरंजित लग सकता है, लेकिन क्रूर सच्चाइयाँ अक्सर ही अतिरंजित लगती हैं।
नई कहानी के दौर में पहली बार कहानी-आलोचना को एक गंभीर विषय के रूप में समझा गया। यह नई कहानी का ही दौर था, जब विभिन्न काव्य-आंदोलनों की तरह कहानी की रचना और पाठ की प्रक्रिया पर गंभीर ‘वाद-विवाद और संवाद’ हुआ। नई कहानी के दौर के बाद कहानी-आलोचना एक बार फिर से हाशिए पर चली गई। कमोबेश यह स्थिति आज भी विद्यमान है।
अँग्रेजी राज-परिवार की घटनाओं से हम तब उद्वेलित होते थे; जब हम रानी विक्टोरिया, जॉर्ज पंचम को अपना ‘भाग्य विधाता’ मानते थे। अगर आज हिंदुस्तानी समाज उसे नोटिस नहीं ले रहा है तो अच्छी बात ही है।
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