नामवर सिंह की कहानी-आलोचना के अंतर्विरोध और नई कहानी

नई कहानी के दौर में पहली बार कहानी-आलोचना को एक गंभीर विषय के रूप में समझा गया। यह नई कहानी का ही दौर था, जब विभिन्न काव्य-आंदोलनों की तरह कहानी की रचना और पाठ की प्रक्रिया पर गंभीर ‘वाद-विवाद और संवाद’ हुआ। नई कहानी के दौर के बाद कहानी-आलोचना एक बार फिर से हाशिए पर चली गई। कमोबेश यह स्थिति आज भी विद्यमान है।

क्या एक गल्प है यह

थिएटर देखते समय अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए तो सबका ध्यान थिएटर में चल रहे दृश्य से हटकर मृत व्यक्ति की ओर आ जाएगा, संभवतः थिएटर थोड़ी देर के लिए रुक या निरस्त भी हो जाए।

क्या आपने कोई ऐसा इंसान देखा है?

कोरोना के क़हर के कारण कुछ अरसे से फ़ेसबुक पर वैसी पोस्टें देखने को नहीं मिल रहीं जो कुछ महीनों पहले रोज़ ही मिल जाती थीं। लगातार एक ही गुहार कि मेरे नाम से अगर कोई व्यक्ति पैसे माँगे तो उसे न दें, वह कोई फ़ेक अकाउंट होगा! जब भी ऐसे पोस्ट देखता, मन कचोट कर रह जाता… पता नहीं कौन होगा?

उसी के पास जाओ जिसके कुत्ते हैं

मुझे पता भी नहीं चला कि कब ये कुत्ते मेरे पीछे लग गए। जब पता चला तो मैं पसीने-पसीने हो गया। मैंने कहीं पढ़ा था कि अगर कुत्ते पीछे पड़ ही जाएँ तो एकदम से भागना ख़तरनाक होता है। आप कुत्तों से तेज़ कभी नहीं दौड़ पाएँगे। कुत्ते आपको नोच डालेंगे।

उनकी नज़र और उनकी कहन इस मंज़र में लासानी थी

इस मनहूस साल के आख़िरी सप्ताह में एक और मनहूस ख़बर—शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी (1935–2020) नहीं रहे। उनके भतीजे, दास्तानगो और फ़िल्म निर्देशक महमूद फ़ारूक़ी ने यह सूचना ट्विटर पर दी।

ट्विटर फ़ीड

फ़ेसबुक फ़ीड