दूसरी लहर के साये में

आज सुबह चार बजे ही उठ गया। बादल हैं, हल्का-हल्का उजाला हो रहा है। द्वार पर लगे बेल के पेड़ पर किसी चिड़िया ने घोंसला बनाया है। वह चहचहा रही है। उसके बच्चे भी हैं। माँ और शिशुओं की आवाज़ आपस में मिल जाती है। बाईं बाँह में वहाँ हल्का-सा दर्द हो रहा है, जहाँ कल टीका लगा था।

मेरी कोई स्त्री नहीं

सियोत से लौट आने के बाद दो दिन से खेत पर ही पड़ा हूँ। यूँ पड़ा रहना मेरे स्वभाव के विपरीत रीति है। गतिशीलता, भटकन (मन और तन दोनों की) और उत्पात में ही मेरी आभा है और मुझे सुभीता है। मैं बहुत देर तक कहीं पड़ा नहीं रह सकता और बहुत देर तक एक जगह खड़ा भी नहीं रह सकता। लेकिन छड़ा रहने का गुण (अवगुण) मैंने ख़ुद विकसित किया है और जड़ा तत्त्व मुझमें स्वभाव-गत है।

निराशा जब आती है

भागने से थकान होती है। पेड़ नहीं भागते। अपनी जगह पर खड़े रहते हैं। वे न हत्या करने जाते हैं और न अपने हत्यारों से भाग पाते हैं। मैं किसी पेड़ को नहीं जानता। तय है कि कोई पेड़ भी मुझे नहीं जानता। वे निहत्थे खड़े हैं।

क्या एक गल्प है यह

थिएटर देखते समय अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए तो सबका ध्यान थिएटर में चल रहे दृश्य से हटकर मृत व्यक्ति की ओर आ जाएगा, संभवतः थिएटर थोड़ी देर के लिए रुक या निरस्त भी हो जाए।

लहू में आग और खाल में राग

सुबह-सवेरे मेरी आँख खुली तो सामने ग़ज़ब दृश्य था। बकरियों के बीच ज़मीन पर रामा लेटा पड़ा सो रहा था और बकरियाँ मिमियाते हुए उसका मुँह चाट रही थीं। रात को हम शराब पीकर नशे में ढेर हो गए थे। रात को कुछ खाया न था, इसलिए सुबह-सुबह बहुत ज़ोरों की भूख लगी थी। परंतु चूल्हे पर चढ़ाया गया खारी-भात का पतीला ग़ायब था।

इस दौर में हँस पाना एक वरदान है

जब कोरोना दुनिया में तबाही मचा रहा था। तब मन में आता था, भारत में ऐसा हुआ तो क्या होगा? हमारे आस-पास ऐसा हुआ तो क्या होगा? कैसे सँभलेंगे हम? कैसे फिर से खड़े होंगे? इतना सब कैसे बर्दाश्त करेंगे? लेकिन अब लगता है, वास्तव में आदमी किसी भी परिस्थिति का आदी हो सकता है।

बीमार मन स्मृतियों से भरा होता है

गए दिन जैसे गुज़रे हैं उन्हें भयानक कहूँ या उस भयावहता का साक्षात्कार, जिसका एक अंश मुझ-से मुझ-तक होकर गुज़रा है। चोर घात लगाए बैठा था और हम शिकार होने को अभिशप्त थे। जैसे धीरे-धीरे हम उसकी ज़द में समा रहे थे, असंख्य डर हमारे सामने रील की तरह आते जा रहे थे। ज़िंदगी को जैसे किसी ने रिवाइंड बटन पर लगा दिया हो, एक-एक कर दृश्य या तो स्थिर हो रहे थे या पीछे की ओर बढ़ रहे थे।

एकतरफ़ा संवाद करती मृत्यु महामारी है

महामारी के दौरान दो सबसे दृश्य पक्ष—एक संवाहक या कैरियर (जैसे कोविड कैरियर) और दूसरी संवहन पुलिस (जैसे पुलिस) है। ये दोनों एक दूसरे की उपस्थिति सुनिश्चित करते हैं। ये दूसरे से अपना निजी अस्तित्व सुनिश्चित करते हैं।

महामारी लोगों के दिलों में निशान ज़रूर छोड़ जाएगी

सभी जानते हैं कि दुनिया में बार-बार महामारियाँ फैलती रहती हैं, लेकिन जब नीले आसमान को फाड़कर कोई महामारी हमारे ही सिर पर आ टूटती है तब, न जाने क्यों, हमें उस पर विश्वास करने में कठिनाई होती है।

प्रकृति का चरित्र और कोरोना-कारावास

कोरोना काल में लॉकडाउन के चलते इंसान के संसार के गति रुक-सी गई है; लेकिन प्रकृति अब भी कितनी सहज, सरल और सुंदर ढंग से गतिमान थी। प्रकृति का चरित्र कितना संस्कृत और सुचारु है! किसी को भी ख़लल डाले बिना, हानि पहुँचाए बिना ज़रूरत भर का लेना और लौटाना।

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