संतृप्त मनोवेगों का संसार

एक स्त्री के लिए एकांत में लौटना रात्रि में लौटना ही हो सकता है। क्योंकि मर्दाना सूर्य उसके रहस्य का दुश्मन है। इसीलिए महादेवी वर्मा के यहाँ रात्रि की अनगिनत छवियाँ और सुगंधियाँ हैं, लेकिन मध्याह्न खोजे नहीं मिलता। मोनिका को रात्रि भी कैसी चाहिए—चाँदनी जिसमें बरस जाए। ऐसी रात्रि नहीं जो आत्मविस्मरण लाए, ऐसी रात्रि चाहिए जो चाँदनी की तरह बरस जाए, जो उज्ज्वल सौंदर्य की अनुभूति दे, और जिसे वह फूलों की तरह चुन सकें।

तिहत्तर वर्ष के देश में बहत्तर वर्ष का कवि

तिहत्तर वर्ष के देश में बहत्तर वर्ष का कवि

मंगलेश डबराल की समग्र कविता के बारे में जब ख़ुद से सवाल पूछती हूँ कि यह इतनी असरदार क्यों है तो एक जवाब यह मिलता है कि यह कवि निडर और निःशस्त्र होकर ख़ुद पर जीवन का असर पड़ने देता था…

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