यह भूमि माता है, मैं पृथिवी का पुत्र हूँ
आज लोक और लेखक के बीच में गहरी खाई बन गई है, उसको किस तरह पाटना चाहिए; इस पर सब साहित्यकारों को पृथक-पृथक और संघ में बैठकर विचार करना आवश्यक है।
आज लोक और लेखक के बीच में गहरी खाई बन गई है, उसको किस तरह पाटना चाहिए; इस पर सब साहित्यकारों को पृथक-पृथक और संघ में बैठकर विचार करना आवश्यक है।
‘खरमिटाव’ अवधी प्रदेश के एक बड़ी पट्टी में प्रचलित शब्द है। इसका चलन धूमिल तो हुआ है, लेकिन बंद नहीं हुआ। इसका साफ़ कारण यह है कि इस शब्द में ऐसे साभ्यतिक इशारे मौजूद हैं, जिनसे जीवन-कर्म का स्वाभाविक मर्म उद्घाटित होता है।
चारपाई दरअस्ल चारपाई नहीं होती। उसके साथ एक दर्शन जुड़ा रहता है। उसका अपना इतिहास है और उसकी एक ऐतिहासिक भूमिका है। यह भारत का एक अद्भुत आविष्कार है। यह काष्ठ शिल्पकारों के उस ‘नॉलेज’ की जीवंत और साहस-गाथा है, जिसने ‘सुख’ और ‘ज्ञान’ को ब्राह्मणों के एकाधिकार से मुक्ति दिलाने का ऐतिहासिक काम किया।
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