यादों के कवि की याद में

विस्मरण या भूलना एक स्वाभाविक मानसिक क्रिया है। हमारे मष्तिष्क की कार्य-पद्धति ऐसी है कि वह पुरानी होती स्मृतियों को भुलाता जाता है, और इस प्रकार नई स्मृतियों के लिए स्थान बनाता जाता है।

मंगलेशियत का पुनर्पाठ

वह अनंत यात्रा पर निकल गए हैं। यह अचानक हुआ है। हिंदी ने और कविता ने अभी उन्हें विदा करने की तैयारी नहीं कर रखी थी। अभी मृत्यु पर इधर-उधर की संस्कृतियों के कुछ फ़लसफ़े पढ़ हमारे मनों को मज़बूत किया जाना शेष था।

तिहत्तर वर्ष के देश में बहत्तर वर्ष का कवि

तिहत्तर वर्ष के देश में बहत्तर वर्ष का कवि

मंगलेश डबराल की समग्र कविता के बारे में जब ख़ुद से सवाल पूछती हूँ कि यह इतनी असरदार क्यों है तो एक जवाब यह मिलता है कि यह कवि निडर और निःशस्त्र होकर ख़ुद पर जीवन का असर पड़ने देता था…

मृतकों का अपना जीवन है

कविता में कभी अच्छा मनुष्य दिख जाता है या कभी अच्छे मनुष्य में कविता दिख जाती है। कभी-कभी एक के भीतर दोनों ही दिख जाते हैं। यही एक बड़ा प्रतिकार है। और अगर यह ऐसा युग है, जब कविता में बुरा मनुष्य भी दिख रहा है तब तो कविता में अच्छा मनुष्य और भी ज़्यादा दिखेगा।

वक़्त की विडम्बना में कविता की तरह

कवि आत्मकथा कम ही लिखते हैं। उनकी जीवनियाँ भी कम ही लिखी जाती हैं। मंगलेश डबराल (1948-2020) ने भी आत्मकथा नहीं लिखी। लेकिन उनके गद्य के आत्मपरक अंश और उनके साक्षात्कारों को एक तरफ़ करके, अगर हम उनकी पूरी ज़िंदगी और जीवन-मूल्यों को जानते-समझते हुए उनके कविता-संसार में प्रवेश करें; तब हम पाएँगे कि मंगलेश डबराल ने आत्मकथा लिखी है।

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