आशीष मिश्र

हिंदी की नई पीढ़ी से संबद्ध सुपरिचित आलोचक। ‘हिन्दवी’ के लिए ‘व्यक्ति-विवेक’ स्तंभ के अंतर्गत हिंदी की नई रचनाशीलता और नए कविता-संग्रहों पर लिख रहे हैं।

कविता का आधुनिक रहस्य

यह अनुभूतियों का अनात्मवाद है। कोई कल्पनाशील व्यक्ति कैसे कह सकता है कि अनंत और विस्मय से घिरी हुई सब्ज़-ओ-शादाब पृथ्वी एक विराट वृक्ष नहीं है? कहना न होगा कि सृष्टि-वृक्ष की यह उदात्त कल्पना हमारी परंपरा में रही आई है।

पहचान की ज़मीन पर

वीरू सोनकर के पास कविता में घूरकर देखने का ‘हुनर’ भले कम हो, साहस की कमी नहीं है। यह साहस ही इस कवि के लिए कविता में संभावनाएँ और दुर्घटनाएँ लेकर आता है। उसके भीतर का ग़ुस्सा संग्रह की तमाम कविताओं में मद्धम-मुखर दिखाई पड़ेगा।

पुरुषों की दुनिया में स्त्री

मेरी समझ से हर पाठक की कविता से अपनी विशिष्ट अपेक्षाएँ होती हैं। ये अपेक्षाएँ कई बार बहुत मनोगत और अकथनीय भी हो सकती हैं। मैं आपकी तो नहीं कह सकता, लेकिन अपनी सुना सकता हूँ।

ख़ुशियों के गुप्तचर की दुनिया

इस संग्रह का काव्य-पुरुष यह मानता है कि कवि ईश्वर की कमियों और असमर्थताओं को पूरी करता है। वह कहता है कि ‘जिन सुंदरताओं को रचने में ईश्वर असमर्थ होता है उन्हें कवियों के भरोसे छोड़ देता है’। यह दृश्य या भौतिक दुनिया के बरअक्स, मनुष्य की विशिष्ट फ़ितरत, कल्पना की स्थापना है।

‘आलम किसू हकीम का बाँधा तिलिस्म है’

मैं इलाहाबाद, बनारस होते हुए दिल्ली पहुँचा; और मुझ तक पहुँचती रहीं कविताओं से भरी हुई हिंदी की छोटी-बड़ी अनगिनत पत्रिकाएँ। मैं हर जगह अपने वय के कवियों से जुड़ा रहा। बहुत से कवियों को उनकी पहली कविता से जानता हूँ। कई को उनके पहले सार्वजनिक पाठ से। कई कवियों की कविताओं के हर ड्राफ़्ट से वाक़िफ़ हूँ।

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