सूक्ष्मता से देखना और पहचानना
साहित्यकार को चाहिए कि वह अपने परिवेश को संपूर्णता और ईमानदारी से जिए। वह अपने परिवेश से हार्दिक प्रेम रखे, क्योंकि इसी के द्वारा वह अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ खाद प्राप्त करता है।
साहित्यकार को चाहिए कि वह अपने परिवेश को संपूर्णता और ईमानदारी से जिए। वह अपने परिवेश से हार्दिक प्रेम रखे, क्योंकि इसी के द्वारा वह अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ खाद प्राप्त करता है।
मैं उस मृत्यु के बारे में अक्सर सोचता हूँ जो क्षण-क्षण घटित हो रही है, हम में, तुम में, सब में। मृत्यु शायद किसी एक अमंगल क्षण में घटित होने वाली विभीषिका नहीं है। वह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।
जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है प्रसन्नता। यह जिसने हासिल कर ली, उसका जीवन सार्थक हो गया।
व्यक्तिगत समस्याएँ जहाँ तक सामाजिक हैं, सामाजिक समस्याओं के साथ ही हल हो सकती हैं। अतः व्यक्तिगत रूप से उन्हें हल करने के भ्रम का पर्दाफ़ाश किया जाना चाहिए ताकि व्यक्ति अपनी भूमिका स्पष्ट रूप से समझ सके और समाज का निर्णायक अंग बन सके।
हमें यह उदास स्वीकार कर लेना चाहिए कि हम अँधेरे में लालटेनें हैं। हमसे रास्ते रोशन नहीं होते किसी और के, हम अपनी विपथगामिता पर चौकसी करते चौकीदार भर हैं।
प्रेम की चरम-सीमा वहाँ है, जहाँ व्यक्ति तन्मय हो जाता है। ऐसी अवस्था में व्यक्ति प्रेम करता नहीं है, स्वयं प्रेम होता है।
कविता में कभी अच्छा मनुष्य दिख जाता है या कभी अच्छे मनुष्य में कविता दिख जाती है। कभी-कभी एक के भीतर दोनों ही दिख जाते हैं। यही एक बड़ा प्रतिकार है। और अगर यह ऐसा युग है, जब कविता में बुरा मनुष्य भी दिख रहा है तब तो कविता में अच्छा मनुष्य और भी ज़्यादा दिखेगा।
जो लोग इस भ्रम में पड़े रहते हैं कि वे सुरक्षित हैं क्योंकि वे किसी मान्यता का पक्ष नहीं ले रहे, किसी का विरोध नहीं कर रहे, उनका पक्ष-विपक्ष नहीं है और उनका कोई अपना विचार नहीं है, वे समृद्धि की कल्पना में खोए हुए हैं।
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