ईश्वर अनाम न रहे, इसीलिए देवता हैं
साहित्य हमें पानी नहीं देता, वह सिर्फ़ हमें अपनी प्यास का बोध कराता है। जब तुम स्वप्न में पानी पीते हो, तो जागने पर सहसा एहसास होता है कि तुम सचमुच कितने प्यासे थे।
साहित्य हमें पानी नहीं देता, वह सिर्फ़ हमें अपनी प्यास का बोध कराता है। जब तुम स्वप्न में पानी पीते हो, तो जागने पर सहसा एहसास होता है कि तुम सचमुच कितने प्यासे थे।
मेरी आधुनिकता की एक चिंता यह है कि उसमें लालमोहर कहाँ है? मेरी बस्ती के आख़िरी छोर पर रहने वाला लालमोहर वह जीती-जागती सचाई है, जिसकी नीरंध्र निरक्षरता और अज्ञान के आगे मुझे अपनी अर्जित आधुनिकता कई बार विडम्बनापूर्ण लगने लगती है।
कम बोलना चाहिए। ऐसा इसलिए कि कविता में बोले जाने की बात को ‘कह’ देने की गुंजाइश बनी रहती हैं।
साहित्यकार को चाहिए कि वह अपने परिवेश को संपूर्णता और ईमानदारी से जिए। वह अपने परिवेश से हार्दिक प्रेम रखे, क्योंकि इसी के द्वारा वह अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ खाद प्राप्त करता है।
मैं उस मृत्यु के बारे में अक्सर सोचता हूँ जो क्षण-क्षण घटित हो रही है, हम में, तुम में, सब में। मृत्यु शायद किसी एक अमंगल क्षण में घटित होने वाली विभीषिका नहीं है। वह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।
जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है प्रसन्नता। यह जिसने हासिल कर ली, उसका जीवन सार्थक हो गया।
व्यक्तिगत समस्याएँ जहाँ तक सामाजिक हैं, सामाजिक समस्याओं के साथ ही हल हो सकती हैं। अतः व्यक्तिगत रूप से उन्हें हल करने के भ्रम का पर्दाफ़ाश किया जाना चाहिए ताकि व्यक्ति अपनी भूमिका स्पष्ट रूप से समझ सके और समाज का निर्णायक अंग बन सके।
हमें यह उदास स्वीकार कर लेना चाहिए कि हम अँधेरे में लालटेनें हैं। हमसे रास्ते रोशन नहीं होते किसी और के, हम अपनी विपथगामिता पर चौकसी करते चौकीदार भर हैं।
हम उनके घर पर पहुँचे। वह अपने कमरे में सो रहे थे। मैंने उनके अध्ययन-कक्ष में देखा—कोने में एक झोला टँगा है। टेबल पर ओम थानवी की अज्ञेय पर केंद्रित किताब रखी है। हाथ से लिखे कुछ पन्ने पड़े हैं।
प्रेम की चरम-सीमा वहाँ है, जहाँ व्यक्ति तन्मय हो जाता है। ऐसी अवस्था में व्यक्ति प्रेम करता नहीं है, स्वयं प्रेम होता है।
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