बीमार मन स्मृतियों से भरा होता है

गए दिन जैसे गुज़रे हैं उन्हें भयानक कहूँ या उस भयावहता का साक्षात्कार, जिसका एक अंश मुझ-से मुझ-तक होकर गुज़रा है। चोर घात लगाए बैठा था और हम शिकार होने को अभिशप्त थे। जैसे धीरे-धीरे हम उसकी ज़द में समा रहे थे, असंख्य डर हमारे सामने रील की तरह आते जा रहे थे। ज़िंदगी को जैसे किसी ने रिवाइंड बटन पर लगा दिया हो, एक-एक कर दृश्य या तो स्थिर हो रहे थे या पीछे की ओर बढ़ रहे थे।

महामारी लोगों के दिलों में निशान ज़रूर छोड़ जाएगी

सभी जानते हैं कि दुनिया में बार-बार महामारियाँ फैलती रहती हैं, लेकिन जब नीले आसमान को फाड़कर कोई महामारी हमारे ही सिर पर आ टूटती है तब, न जाने क्यों, हमें उस पर विश्वास करने में कठिनाई होती है।

मुझे निरर्थकता की तीखी गंध आ रही है

वह अपने झूठ को सच बनाती थी, इस तरह कि उसका सच जंगली हो जाता था। वह जंगल कि जिसमें पेड़ नहीं थे, सिर्फ़ पीड़ाएँ थीं… जिसमें अनर्गल बातों के जैसी उग आती थी—हल्की पीली घास। फिर मैं बैठकर क्लोरोफ़िल की अधिकता पर बातें करता था। वह कहती थी, ‘मै अनपढ़ हूँ, यक़ीन करो। सत्य और समय मेरे दुश्मन है, और इस पीड़ा का कोई इलाज नहीं। मैं कितनी ही बार सच बोलते हुए चोटिल हुई हूँ, यह एक लंबे समय तक होता रहा है।’’

सफलता एक निरर्थक शब्द है दोस्त

एक बहुत ही निजी, मासूम और पवित्र भाषा के लिए बधाई! काफ़ी दिनों बाद इतना निजी और अल्हड़ गद्य पढ़ा। सोचने लगा कि बहुत सारी समझदारी ने कहीं हमारी भाषा को ज़रूरत से ज़्यादा सार्वजनिक तो नहीं कर दिया… पता नहीं!

जहाँ लड़की होना ही काफ़ी है

मुझे बचपन से ही करौली की धर्मशालाओं और अपने शहर की महिला कॉलेजों में कोई ज़्यादा फ़र्क़ समझ में नहीं आया। मुझे लगता रहा कि धर्मशालाओं की तरह ये कॉलेज भी धर्मार्थ ही खुलवा दिए गए थे, जिनसे कोई भी उम्मीद रखना गुनाह-ए-अज़ीम-सा था

उसी के पास जाओ जिसके कुत्ते हैं

मुझे पता भी नहीं चला कि कब ये कुत्ते मेरे पीछे लग गए। जब पता चला तो मैं पसीने-पसीने हो गया। मैंने कहीं पढ़ा था कि अगर कुत्ते पीछे पड़ ही जाएँ तो एकदम से भागना ख़तरनाक होता है। आप कुत्तों से तेज़ कभी नहीं दौड़ पाएँगे। कुत्ते आपको नोच डालेंगे।

प्रकृति का चरित्र और कोरोना-कारावास

कोरोना काल में लॉकडाउन के चलते इंसान के संसार के गति रुक-सी गई है; लेकिन प्रकृति अब भी कितनी सहज, सरल और सुंदर ढंग से गतिमान थी। प्रकृति का चरित्र कितना संस्कृत और सुचारु है! किसी को भी ख़लल डाले बिना, हानि पहुँचाए बिना ज़रूरत भर का लेना और लौटाना।

भूले-भटके दिन : कुछ रूमानी टुकड़े

छोड़कर चले जाने वालों की भी उतनी ही बातें याद रहती हैं, जो प्यारी थीं। रोना वही सब सोचकर तो आता है। जाने के झगड़े लंबी स्मृतियों में नहीं टिकते… कॉफ़ी में कितनी चीनी चाहिए यह सूचना रुकी रहती है… मन के क्लाउड स्टोरेज से डिलीट ही नहीं होती।

दुःख की नई भाषा

दुःख के अथाह सागर में डूबा हुआ हूँ। जब भी पीड़ा में होता हूँ, अपनी व्यथा को व्यक्त करने के लिए नए बिंब तलाशने की बजाय परिचित भाषा में कहता हूँ। अभी मैं इस उद्देश्य से लिख रहा हूँ कि मुझे दुखों की अभिव्यक्ति के लिए उचित भाषा प्राप्त हो और दूसरा कि मैं अपने दुःख को जान सकूँ।

एकांतवास, कमज़ोर मन और आकांक्षाओं का अभिशाप

वह अकेली नहीं रहना चाहती, यह बात उसका प्रेमी जानता है। यह बात वह लड़का भी जानता है। मगर दोनों में से कोई उसके साथ रहने का वादा नहीं देना चाहता। वादे वह निभाना जानती है। वह यह बात किसी से नहीं कह सकती कि वह अकेलेपन से डरती है।

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