फूँक-फूँक कर लिखी गई एक किताब

मुझे होश तब आया जब सामने की गाड़ी में हरकत हुई और दृश्य आगे बढ़ने लग गया। मैं वक़्त में अभी ठहरने ही पाई थी कि जाम घुटनों के बल सरकने लगा। यह धोखा था। पर नहीं भी था।

साथ निभाने की कला

सम्बन्धों के बिना मानव जीवन कितना शांत और सरल है। लेकिन ऐसी शांति और सरलता किस काम की जिसमें मानव किसी से दो बातें न कह सके। किसी के ऊपर चिल्ला न सके। उससे झगड़ न सके। झापड़ न मार सके या बदले में उससे झापड़ न खा सके। और अगले ही क्षण उसे प्रेम न कर सके।

पहाड़ पर पिघलते मुहावरे

भाषा और दृश्य के संबंधों पर विचार करते हुए मुझे एक बार विचित्र क़िस्म की अनुभूति हुई। मुझे लिखे हुए शब्द रेखाचित्र से दिखने लगे। ‘हाथी’ लिखे हुए शब्द में ‘ह’ और ‘थ’ दिखने की बजाय मुझे एक समूचे हाथी का चित्र दिखने लगा। मैंने अपने एक मित्र से पूछा कि भाषा और चित्रकला में क्या भेद है?

क्या हम समय, स्थान और लोगों को पहचान रहे हैं

इस अस्पताल में आने वाले मरीज़ों की सामाजिक-आर्थिक प्रोफ़ाइल का डेटाबेस बनाया जाए तो पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार के एक बड़े हिस्से के बारे में चौंकाने वाले खुलासे होंगे।

मैं अब हर घर को उल्टा देखना चाहती हूँ

केंद्र का न रहना, संवाद का न होना, कितना डरावना होता है—यह मैंने इस उल्टे घर में महसूस किया।

एक कैफ़े को शुरू करने का संघर्ष

इस समय मुझे समय की गणना उतनी ही ग़ैरज़रूरी लग‌ रही है जितनी ‌कि‌ यह‌ गिनना कि तुम्हें ‌प्रेम करते हुए ‌कितना‌ समय बीता। गणनाएँ और अंक मशीनों की और‌ मशीनीकरण की आवश्यकता ‌हैं।

‘सारी मानवीयता दाँव पर लगी है’

साक्षात्कार या संवाद के शिल्प में नहीं इस साक्षात्कार या संवाद की शुरुआत आज से क़रीब चार वर्ष पूर्व हुई। मुलाक़ातों और सवालों के सिलसिले इसमें जुड़ते और नए होते चले गए। सवालों के जवाब देने और उन्हें माँजने के लिए यहाँ पर्याप्त वक़्त लिया गया। प्रत्येक जवाब पर एक रचना की तरह कार्य किया गया है। यह प्रयास और धैर्य अपनी ओर से आ रहे शब्दों के प्रति एक रचनाकार की ज़िम्मेदारी और नैतिकता को दर्शाता है।

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