‘हिंदी के लेखक अलग-अलग क्षेत्रों के ड्रॉपआउट्स हैं’
उदय प्रकाश से संवाद एक मुश्किल काम है। उनकी शख़्सियत में ‘अनिश्चितता’ का अंडरटोन है। वह खुलते हैं तो बहुत सहज दिखते हैं, मगर कभी-कभी एक कठिन चुप्पी उन पर हावी हो जाती है।
उदय प्रकाश से संवाद एक मुश्किल काम है। उनकी शख़्सियत में ‘अनिश्चितता’ का अंडरटोन है। वह खुलते हैं तो बहुत सहज दिखते हैं, मगर कभी-कभी एक कठिन चुप्पी उन पर हावी हो जाती है।
हम उनके घर पर पहुँचे। वह अपने कमरे में सो रहे थे। मैंने उनके अध्ययन-कक्ष में देखा—कोने में एक झोला टँगा है। टेबल पर ओम थानवी की अज्ञेय पर केंद्रित किताब रखी है। हाथ से लिखे कुछ पन्ने पड़े हैं।
सुधांशु फ़िरदौस (जन्म : 1985) का वास्ता इस सदी में सामने आई हिंदी कविता की नई पीढ़ी से है। गत वर्ष उनकी कविताओं की पहली किताब ‘अधूरे स्वाँगों के दरमियान’ शीर्षक से प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक पर एक आलेख ‘हिन्दवी ब्लॉग’ पर प्रकाशित हो चुका है। इसके साथ ही सुधांशु फ़िरदौस इसक-2021 के कवि भी हैं।
वह कहानियाँ, उपन्यास और इतिहास लिखते हैं। लेकिन इधर के उनके रचनाकर्म में बतौर एक कथाकार और इतिहासकार दोनों से ही अलग एक नए क़िस्म की बेचैनी है। इसके लिए उन्होंने विधागत कुछ नए प्रारूप गढ़े हैं जिनके माध्यम से वह अपनी साहित्य-चिंताओं के साथ साहित्य की राजनीति और उसमें आई गिरावट को दर्ज कर रहे हैं।
साक्षात्कार या संवाद के शिल्प में नहीं इस साक्षात्कार या संवाद की शुरुआत आज से क़रीब चार वर्ष पूर्व हुई। मुलाक़ातों और सवालों के सिलसिले इसमें जुड़ते और नए होते चले गए। सवालों के जवाब देने और उन्हें माँजने के लिए यहाँ पर्याप्त वक़्त लिया गया। प्रत्येक जवाब पर एक रचना की तरह कार्य किया गया है। यह प्रयास और धैर्य अपनी ओर से आ रहे शब्दों के प्रति एक रचनाकार की ज़िम्मेदारी और नैतिकता को दर्शाता है।
गीत चतुर्वेदी (जन्म : 1977) हिंदी के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले समकालीन लेखकों में से एक हैं। कविताओं की तीन किताबों सहित उनकी दस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। उनकी कविता-पंक्तियों ने मौजूदा कविता-समय में संप्रेषण, प्रस्तुति और प्रसार के नए मानक रचे हैं। गीत के प्रसंग में यह सब कुछ इसलिए भी सुंदर और उल्लेखनीय लगता है, क्योंकि वह ख़ूब पढ़े-लिखे और नई दुनिया की समझ रखने वाले व्यक्तित्व हैं।
अलका सरावगी हिंदी की अत्यंत प्रतिष्ठित उपन्यासकार हैं। वह साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित हैं। यह पुरस्कार उन्हें उनके पहले ही उपन्यास ‘कलि-कथा : वाया बाइपास’ के लिए साल 2001 में मिला। तब से अब तक हिंदी संसार उनके नए उपन्यासों का बेसब्री से इंतिज़ार करता है।
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