‘दिल्ली की साहित्य-मंडी से अब कुछ नहीं जन्मेगा’
वह कहानियाँ, उपन्यास और इतिहास लिखते हैं। लेकिन इधर के उनके रचनाकर्म में बतौर एक कथाकार और इतिहासकार दोनों से ही अलग एक नए क़िस्म की बेचैनी है। इसके लिए उन्होंने विधागत कुछ नए प्रारूप गढ़े हैं जिनके माध्यम से वह अपनी साहित्य-चिंताओं के साथ साहित्य की राजनीति और उसमें आई गिरावट को दर्ज कर रहे हैं।