याद करने की कोशिश करता हूँ तो याद आता है
चाहे जितने भी दिन हो, एक दिन सब ख़त्म हो जाते हैं। ख़त्म होने के सिवा उनके पास कोई और चारा भी तो नहीं होता। यह समय कभी रुकेगा? हो सकता है, कोई कहीं कल्पना करके थोड़ी देर के लिए ऐसा कर पाए। उस कल्पना के बाहर ऐसा होता हुआ नहीं लगता। सब इसी धरती के घूमने के बाद सुलझ जाता है। कहीं कोई प्रश्न, शंका कुछ भी आड़े नहीं आता। यह निरुत्तर होने और सब प्रश्नों के उत्तर मिलने जैसा वाक्य बन गया है।