मैं अब हर घर को उल्टा देखना चाहती हूँ
केंद्र का न रहना, संवाद का न होना, कितना डरावना होता है—यह मैंने इस उल्टे घर में महसूस किया।
केंद्र का न रहना, संवाद का न होना, कितना डरावना होता है—यह मैंने इस उल्टे घर में महसूस किया।
मेरी समझ से हर पाठक की कविता से अपनी विशिष्ट अपेक्षाएँ होती हैं। ये अपेक्षाएँ कई बार बहुत मनोगत और अकथनीय भी हो सकती हैं। मैं आपकी तो नहीं कह सकता, लेकिन अपनी सुना सकता हूँ।
भारत सरकार के प्रकाशन विभाग की मासिक पत्रिका ‘आजकल’ ने अपने दिसम्बर-2020 अंक को ‘डिजिटल मंच पर हिंदी साहित्य’ विषय पर केंद्रित किया है। इस प्रसंग में एक प्रश्नावली मुझे भी इस आग्रह के साथ ई-मेल की गई कि मैं इस अवसर के लिए आयोजित परिचर्चा का हिस्सा बनूँ।
इस समय मुझे समय की गणना उतनी ही ग़ैरज़रूरी लग रही है जितनी कि यह गिनना कि तुम्हें प्रेम करते हुए कितना समय बीता। गणनाएँ और अंक मशीनों की और मशीनीकरण की आवश्यकता हैं।
इस संग्रह का काव्य-पुरुष यह मानता है कि कवि ईश्वर की कमियों और असमर्थताओं को पूरी करता है। वह कहता है कि ‘जिन सुंदरताओं को रचने में ईश्वर असमर्थ होता है उन्हें कवियों के भरोसे छोड़ देता है’। यह दृश्य या भौतिक दुनिया के बरअक्स, मनुष्य की विशिष्ट फ़ितरत, कल्पना की स्थापना है।
यह वर्ष बीथोवन का 250वाँ वर्ष है। उनका जन्म दिसंबर 1770 में जर्मनी के बॉन शहर में हुआ था। अप्रैल 1800 में वियना की एक शाम जब बीथोवन अपनी पहली ‘सिम्फ़नी’ परफ़ॉर्म कर रहे थे, तब उनके सामने खड़ी दुनिया जैसे कोई अचंभा सुन रही थी।
नौकरी और पढ़ाई दोनों एक साथ करना आसान नहीं होता। आपको बहुत बार जिस जगह होना चाहिए, आप वहाँ नहीं हो पाते… और यह कोई नई बात तो नहीं है, ऐसा अक्सर बहुतों के साथ और बहुत बार होता है।
विस्मरण या भूलना एक स्वाभाविक मानसिक क्रिया है। हमारे मष्तिष्क की कार्य-पद्धति ऐसी है कि वह पुरानी होती स्मृतियों को भुलाता जाता है, और इस प्रकार नई स्मृतियों के लिए स्थान बनाता जाता है।
वह अनंत यात्रा पर निकल गए हैं। यह अचानक हुआ है। हिंदी ने और कविता ने अभी उन्हें विदा करने की तैयारी नहीं कर रखी थी। अभी मृत्यु पर इधर-उधर की संस्कृतियों के कुछ फ़लसफ़े पढ़ हमारे मनों को मज़बूत किया जाना शेष था।
मंगलेश डबराल की समग्र कविता के बारे में जब ख़ुद से सवाल पूछती हूँ कि यह इतनी असरदार क्यों है तो एक जवाब यह मिलता है कि यह कवि निडर और निःशस्त्र होकर ख़ुद पर जीवन का असर पड़ने देता था…
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