प्रति-रचनात्मकता : रचनात्मकता का भ्रम और नया समाजशास्त्र
तकनीक और सुविधाओं के इस भँवरजाल में जीते हुए हमने अपना समयबोध और रचनाबोध दोनों ही गँवा दिया है, ऐसा जान पड़ता है। सूचनाएँ हम तक इतनी तीव्र गति से पहुँचती हैं कि हम अभी पुरानी सूचना को पचा ही पाएँ, तब तक एक नई सूचना हमारे सामने होती है। घटनाएँ, दुर्घटनाएँ तक टिकती नहीं; जैसे सब कुछ किसी तीव्र गति के प्रवाह में हो और इसकी गति को नियंत्रित ही न किया जा सके?