एकतरफ़ा संवाद करती मृत्यु महामारी है

महामारी के दौरान दो सबसे दृश्य पक्ष—एक संवाहक या कैरियर (जैसे कोविड कैरियर) और दूसरी संवहन पुलिस (जैसे पुलिस) है। ये दोनों एक दूसरे की उपस्थिति सुनिश्चित करते हैं। ये दूसरे से अपना निजी अस्तित्व सुनिश्चित करते हैं।

महामारी लोगों के दिलों में निशान ज़रूर छोड़ जाएगी

सभी जानते हैं कि दुनिया में बार-बार महामारियाँ फैलती रहती हैं, लेकिन जब नीले आसमान को फाड़कर कोई महामारी हमारे ही सिर पर आ टूटती है तब, न जाने क्यों, हमें उस पर विश्वास करने में कठिनाई होती है।

निरा संयोग दुनिया में कुछ नहीं होता

कला कैलेंडर की चीज़ नहीं है। वह कलाकार की अपनी बहुत निजी चीज़ है। जितनी ही अधिक वह उसकी अपनी निजी है, उतनी ही कालांतर में वह औरों की भी हो सकती है—अगर वह सच्ची है, कला-पक्ष और भाव-पक्ष दोनों ओर से। वह ‘अपने-आप’ प्रकाशित होगी। और कवि के लिए वह सदैव कहीं न कहीं प्रकाशित है—अगर वह सच्ची कला है, पुष्ट कला है।

मुझे निरर्थकता की तीखी गंध आ रही है

वह अपने झूठ को सच बनाती थी, इस तरह कि उसका सच जंगली हो जाता था। वह जंगल कि जिसमें पेड़ नहीं थे, सिर्फ़ पीड़ाएँ थीं… जिसमें अनर्गल बातों के जैसी उग आती थी—हल्की पीली घास। फिर मैं बैठकर क्लोरोफ़िल की अधिकता पर बातें करता था। वह कहती थी, ‘मै अनपढ़ हूँ, यक़ीन करो। सत्य और समय मेरे दुश्मन है, और इस पीड़ा का कोई इलाज नहीं। मैं कितनी ही बार सच बोलते हुए चोटिल हुई हूँ, यह एक लंबे समय तक होता रहा है।’’

उनके संदेश ने लोगों का नज़रिया एकदम बदल दिया

किसी महापुरुष के लिए तात्कालिक चापलूसी और लोगों द्वारा सस्ते उपहास दोनों का ही बहुत कम महत्त्व होता है और मैं जानता हूँ कि महात्माजी में यह महानता विद्यमान है।

उसी के पास जाओ जिसके कुत्ते हैं

मुझे पता भी नहीं चला कि कब ये कुत्ते मेरे पीछे लग गए। जब पता चला तो मैं पसीने-पसीने हो गया। मैंने कहीं पढ़ा था कि अगर कुत्ते पीछे पड़ ही जाएँ तो एकदम से भागना ख़तरनाक होता है। आप कुत्तों से तेज़ कभी नहीं दौड़ पाएँगे। कुत्ते आपको नोच डालेंगे।

‘भोपाल के रूप में मैंने अपना ही कुछ खो दिया’

यह 22 की उम्र में किसी लेखक से मेरा पहला इंटरव्यू था। मैं थोड़ा नर्वस भी थी। मैंने मुलाक़ात से पहले उनके दो उपन्यास ख़रीदकर पढ़े और फिर तैयारी के साथ सवाल बनाकर ले गई। मैंने उनके दो उपन्यास पढ़े हैं… सिर्फ़ इस एक बात से मंज़ूर साहब इतना खुश हो गए कि देर तक हैरानी से भरकर हँसते रहे। ‘‘जीती रहो बेटा, जीती रहो, यूँ ही पढ़ना हमेशा, किसी को भी पढ़ो, मगर पढ़ना…’’ यह कहते हुए वह देर तक हँसते ही रहे। मुझे उनकी वह हँसी आज भी याद है—हैरानी में डूबी हुई हँसी।

दुःख की नई भाषा

दुःख के अथाह सागर में डूबा हुआ हूँ। जब भी पीड़ा में होता हूँ, अपनी व्यथा को व्यक्त करने के लिए नए बिंब तलाशने की बजाय परिचित भाषा में कहता हूँ। अभी मैं इस उद्देश्य से लिख रहा हूँ कि मुझे दुखों की अभिव्यक्ति के लिए उचित भाषा प्राप्त हो और दूसरा कि मैं अपने दुःख को जान सकूँ।

एकांतवास, कमज़ोर मन और आकांक्षाओं का अभिशाप

वह अकेली नहीं रहना चाहती, यह बात उसका प्रेमी जानता है। यह बात वह लड़का भी जानता है। मगर दोनों में से कोई उसके साथ रहने का वादा नहीं देना चाहता। वादे वह निभाना जानती है। वह यह बात किसी से नहीं कह सकती कि वह अकेलेपन से डरती है।

एक पुरुष की देह को लेकर

बहुत याद करने पर भी और बहुत मूड़ मारने पर भी पिछले दिनों ठीक-ठीक यह याद नहीं आया कि उस दिन हमारे घर में कौन-सा आयोजन था। हाँ, यह ख़ूब याद है कि उसी बरस किसी महीने दादी मरी थीं; पर यह याद नहीं आता कि वह दिन उनका दसवाँ था, तेरहवीं थी, होली थी या बरसी थी…पर उनकी मृत्यु से ही जुड़ा कोई आयोजन था घर में।

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