‘मानव मानव से नहीं भिन्न’

अँग्रेजी राज-परिवार की घटनाओं से हम तब उद्वेलित होते थे; जब हम रानी विक्टोरिया, जॉर्ज पंचम को अपना ‘भाग्य विधाता’ मानते थे। अगर आज हिंदुस्तानी समाज उसे नोटिस नहीं ले रहा है तो अच्छी बात ही है।

राजनीतिक हस्तक्षेप में उनका विश्वास था

फणीश्वरनाथ रेणु की विचारधारा उनकी भावधारा से बनी थी। उन्हें विचारों से अपने भावजगत की संरचना करने की विवशता नहीं थी। यही कारण था कि वह अमूर्त से सैद्धांतिक सवालों पर बहस नहीं करते थे। उनके विचारों का स्रोत कहीं बाहर—पुस्तकीय ज्ञान में—न था।

मूर्खता सरलता का सत्यरूप है

जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है प्रसन्नता। यह जिसने हासिल कर ली, उसका जीवन सार्थक हो गया।

‘यह दिमाग़ों के कूड़ाघर में तब्दील किए जाने का समय है’

हमें यह उदास स्वीकार कर लेना चाहिए कि हम अँधेरे में लालटेनें हैं। हमसे रास्ते रोशन नहीं होते किसी और के, हम अपनी विपथगामिता पर चौकसी करते चौकीदार भर हैं।

‘सारी मानवीयता दाँव पर लगी है’

साक्षात्कार या संवाद के शिल्प में नहीं इस साक्षात्कार या संवाद की शुरुआत आज से क़रीब चार वर्ष पूर्व हुई। मुलाक़ातों और सवालों के सिलसिले इसमें जुड़ते और नए होते चले गए। सवालों के जवाब देने और उन्हें माँजने के लिए यहाँ पर्याप्त वक़्त लिया गया। प्रत्येक जवाब पर एक रचना की तरह कार्य किया गया है। यह प्रयास और धैर्य अपनी ओर से आ रहे शब्दों के प्रति एक रचनाकार की ज़िम्मेदारी और नैतिकता को दर्शाता है।

‘झूठ से सच्चाई और गहरी हो जाती है’

गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण

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