‘रचना का प्रयोजन निर्माण है, नाश नहीं’
मैंने साहित्य की किसी भी विधा में जब भी लिखा तब यह सोचकर नहीं लिखा कि मैं उक्त विधा की शर्तों को पूरा करने के लिए लिख रहा हूँ।
मैंने साहित्य की किसी भी विधा में जब भी लिखा तब यह सोचकर नहीं लिखा कि मैं उक्त विधा की शर्तों को पूरा करने के लिए लिख रहा हूँ।
अलका सरावगी हिंदी की अत्यंत प्रतिष्ठित उपन्यासकार हैं। वह साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित हैं। यह पुरस्कार उन्हें उनके पहले ही उपन्यास ‘कलि-कथा : वाया बाइपास’ के लिए साल 2001 में मिला। तब से अब तक हिंदी संसार उनके नए उपन्यासों का बेसब्री से इंतिज़ार करता है।
शैलेश मटियानी (14 अक्टूबर 1931–24 अप्रैल 2001) हिंदी के अनूठे कथाकार हैं। उनका महत्त्व इसमें भी है कि वह सिर्फ़ कथा-कहानी-उपन्यास तक ही सीमित रहकर अपने लेखकीय कर्तव्यों की इति नहीं मानते रहे, बल्कि एक लेखक होने की ज़िम्मेदारियाँ समाज में क्या हैं, इसे भी समय-समय पर दर्ज करते रहे। उनका कथेतर गद्य इस प्रसंग में हिंदी का अप्रतिम कथेतर गद्य है। इस गद्य से ही 10 बातें यहाँ प्रस्तुत हैं :
”कोई यह नहीं कहे कि मैं गांधी का अनुयायी हूँ। मैं जानता हूँ कि मैं अपना कितना अपूर्ण अनुयायी हूँ।”
विष्णु खरे (9 फ़रवरी 1940–19 सितंबर 2018) को याद करते हुए यह याद आता है कि वह समादृत और विवादास्पद एक साथ हैं। उनकी कविताएँ और उनके बयान हमारे पढ़ने और सुनने के अनुभव को बदलते रहे हैं।
यह लेख उनके लिए नहीं है जो मुक्तिबोध को जानते हैं, यह लेख उनके लिए है जो मुक्तिबोध को जानना चाहते हैं…
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