टी-ब्रेक और नक़द व्यवहार

‘खरमिटाव’ अवधी प्रदेश के एक बड़ी पट्टी में प्रचलित शब्द है। इसका चलन धूमिल तो हुआ है, लेकिन बंद नहीं हुआ। इसका साफ़ कारण यह है कि इस शब्द में ऐसे साभ्यतिक इशारे मौजूद हैं, जिनसे जीवन-कर्म का स्वाभाविक मर्म उद्घाटित होता है।

सफलता एक निरर्थक शब्द है दोस्त

एक बहुत ही निजी, मासूम और पवित्र भाषा के लिए बधाई! काफ़ी दिनों बाद इतना निजी और अल्हड़ गद्य पढ़ा। सोचने लगा कि बहुत सारी समझदारी ने कहीं हमारी भाषा को ज़रूरत से ज़्यादा सार्वजनिक तो नहीं कर दिया… पता नहीं!

उसी के पास जाओ जिसके कुत्ते हैं

मुझे पता भी नहीं चला कि कब ये कुत्ते मेरे पीछे लग गए। जब पता चला तो मैं पसीने-पसीने हो गया। मैंने कहीं पढ़ा था कि अगर कुत्ते पीछे पड़ ही जाएँ तो एकदम से भागना ख़तरनाक होता है। आप कुत्तों से तेज़ कभी नहीं दौड़ पाएँगे। कुत्ते आपको नोच डालेंगे।

भूले-भटके दिन : कुछ रूमानी टुकड़े

छोड़कर चले जाने वालों की भी उतनी ही बातें याद रहती हैं, जो प्यारी थीं। रोना वही सब सोचकर तो आता है। जाने के झगड़े लंबी स्मृतियों में नहीं टिकते… कॉफ़ी में कितनी चीनी चाहिए यह सूचना रुकी रहती है… मन के क्लाउड स्टोरेज से डिलीट ही नहीं होती।

‘भोपाल के रूप में मैंने अपना ही कुछ खो दिया’

यह 22 की उम्र में किसी लेखक से मेरा पहला इंटरव्यू था। मैं थोड़ा नर्वस भी थी। मैंने मुलाक़ात से पहले उनके दो उपन्यास ख़रीदकर पढ़े और फिर तैयारी के साथ सवाल बनाकर ले गई। मैंने उनके दो उपन्यास पढ़े हैं… सिर्फ़ इस एक बात से मंज़ूर साहब इतना खुश हो गए कि देर तक हैरानी से भरकर हँसते रहे। ‘‘जीती रहो बेटा, जीती रहो, यूँ ही पढ़ना हमेशा, किसी को भी पढ़ो, मगर पढ़ना…’’ यह कहते हुए वह देर तक हँसते ही रहे। मुझे उनकी वह हँसी आज भी याद है—हैरानी में डूबी हुई हँसी।

दुःख की नई भाषा

दुःख के अथाह सागर में डूबा हुआ हूँ। जब भी पीड़ा में होता हूँ, अपनी व्यथा को व्यक्त करने के लिए नए बिंब तलाशने की बजाय परिचित भाषा में कहता हूँ। अभी मैं इस उद्देश्य से लिख रहा हूँ कि मुझे दुखों की अभिव्यक्ति के लिए उचित भाषा प्राप्त हो और दूसरा कि मैं अपने दुःख को जान सकूँ।

एकांतवास, कमज़ोर मन और आकांक्षाओं का अभिशाप

वह अकेली नहीं रहना चाहती, यह बात उसका प्रेमी जानता है। यह बात वह लड़का भी जानता है। मगर दोनों में से कोई उसके साथ रहने का वादा नहीं देना चाहता। वादे वह निभाना जानती है। वह यह बात किसी से नहीं कह सकती कि वह अकेलेपन से डरती है।

एक चारपाई, कुछ चेहरे और टेढ़े मुँह चाँद की ऐयारी उपस्थिति

चारपाई दरअस्ल चारपाई नहीं होती। उसके साथ एक दर्शन जुड़ा रहता है। उसका अपना इतिहास है और उसकी एक ऐतिहासिक भूमिका है। यह भारत का एक अद्भुत आविष्कार है। यह काष्ठ शिल्पकारों के उस ‘नॉलेज’ की जीवंत और साहस-गाथा है, जिसने ‘सुख’ और ‘ज्ञान’ को ब्राह्मणों के एकाधिकार से मुक्ति दिलाने का ऐतिहासिक काम किया।

हिंदी साहित्य का मतलब

स्कूल और कॉलेज तक मैंने हिंदी को सिर्फ़ उतना ही पढ़ा जितना हमें पढ़ाया गया और जितने की ज़रूरत उस समय महूसस होती थी या यूँ कह लीजिए पेपर में लिखने मात्र के लिए जितने की ज़रूरत पड़ती थी।

पेट, प्यार और पल्प

इस तरह की बातें मैंने कई लोगों से कई लोगों को पूछते-करते देखा है। यह एक रस्मी बात है। अगर साहित्य और लेखन के धंधे का आदमी मिलेगा तो इस तरह की बातें पूछ सकता है।

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