‘चलो अब शुरू करते हैं यह सांस्कृतिक कार्यक्रम’
हिंदी में कविता-पाठ के बारे में कभी विचार नहीं किया जाता। हमारा कविता-पाठ अक्सर बल्कि अधिकतर इतना नीरस, उबाऊ और अनाकर्षक क्यों होता है? दिनोदिन उसका श्रोता समाज कम हो रहा है।
हिंदी में कविता-पाठ के बारे में कभी विचार नहीं किया जाता। हमारा कविता-पाठ अक्सर बल्कि अधिकतर इतना नीरस, उबाऊ और अनाकर्षक क्यों होता है? दिनोदिन उसका श्रोता समाज कम हो रहा है।
अँग्रेजी राज-परिवार की घटनाओं से हम तब उद्वेलित होते थे; जब हम रानी विक्टोरिया, जॉर्ज पंचम को अपना ‘भाग्य विधाता’ मानते थे। अगर आज हिंदुस्तानी समाज उसे नोटिस नहीं ले रहा है तो अच्छी बात ही है।
जीवन स्थितियाँ जितनी त्रासद होती जाती है, ‘फ़ील गुड’ और ‘ऑल इज़ वेल’ का मंत्र-पाठ उतना ही तीव्र होता जाता है। ऐसे में रोंडा बर्न्स, शिव खेड़ा, संदीप माहेश्वरी जैसे महर्षि पैदा होते हैं और ‘लॉ ऑफ़ अट्रेक्शन’ का ज्ञान देते हैं!
हिंदी में उपस्थित स्त्री-कविता का यह स्वर्णकाल है। इस संभव-साक्ष्य को पाने के लिए हमारी भाषा बेहद संघर्ष करती रही है। स्त्री कवियों की संख्या का विस्तार अब इस क़दर है कि उन्होंने पूरे काव्य-दृश्य को ही अपनी आभा से आच्छादित किया हुआ है।
‘सैक्रिफ़ाइज़’ तारकोवस्की की आख़िरी फ़िल्म साबित हुई। एक हफ़्ते बाद जब अवार्ड सेरेमनी में तारकोवस्की का नाम लिया गया, तो उनका चौदह-पंद्रह साल का बेटा अन्द्रिउश्का (Andriushka) मंच पर गया। यह फ़िल्म अन्द्रिउश्का को ही समर्पित थी
ज़िंदगी हमारी सोच के परे चलती है, यह बात हम जितनी जल्दी समझ लेते हैं, उतना ही हमारे लिए अच्छा होता है। हर बार आपकी बनाई हुई योजना काम कर जाए ऐसा नहीं होता… कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ।
कविताओं का सौंदर्यात्मक उद्भास दुनिया से हमारे नए संबंध-संयोजन को जन्म देता चलता है। अवलोकन बाह्य जगत के साथ अपनी अनुभूतियों और वृत्तियों का भी होता है। बाह्य जगत का अवलोकन फिर भी आसान है, आत्मावलोकन सबसे कठिन है। हम अपनी इच्छाओं की पूर्ति में ही इच्छाओं की सार्थकता समझते हैं।
मध्यमवर्गीय आदमी की कविता और मासिक बिल में हमेशा एक अतिरिक्त उभर आता है या छूट जाता है। कवि का एक संसार होता है, आदमी का दूसरा।
रिल्के के लिखे पत्रों में प्रेषित करने वाले का ‘धैर्य’ और पाने वाले की ‘प्रतीक्षा’ का शिल्प एकाकार हो गया है। दो भौगोलिक दूरियों पर रहते हुए भी पति-पत्नी के बीच ये पत्र-संवाद कला के प्रति उनकी निष्ठा और समर्पण के दुर्लभ दस्तावेज़ हैं, इसलिए प्रेम-पत्र के सामान्य अर्थों से पार चले जाते हैं।
कविता शब्द-संभवा है। कविता शब्दों के ज़रिए ही संभव होती है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भी ‘कविता क्या है’ में लिखा है कि कविता शब्दों का व्यापार है। इसलिए शब्द कवि के सबसे महत्त्वपूर्ण औज़ार होते हैं।
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