गांधीजी और उनकी वसीयत
बापू अचानक दिवंगत हो गए—‘राम’ को छोड़कर अंतिम समय और कुछ नहीं कह गए। जिन्हें राजगद्दी लेनी थी, उन्होंने तो ले ली; लेकिन उनके दूसरे सपूत भी इस बीच गले के ज़ोर से सिद्ध करते रहे कि बापू के सच्चे उत्तराधिकारी हमीं हैं। शायद ही कोई राजनीतिक दल इस उत्तराधिकार से बचा हो। अब तक तो ‘राम नाम की लूट है, लूट सके सो लूट’ वाली हालत थी। अंत काल तक पछताने के लिए कोई नहीं रहा। लेकिन आज के अख़बार में जब यह ख़बर मैंने देखी तो दंग रह गया—‘‘सरकार चुनाव-बिल पास करके आगामी चुनाव में गांधीजी के नाम का उपयोग अनैतिक घोषित करने जा रही है।’’