लोग सिर्फ़ दिल से ही अच्छी तरह देख सकते हैं
दोस्त को भूल जाना दुःख की बात है।
दोस्त को भूल जाना दुःख की बात है।
हम नफ़रत करते हुए भी, प्यार करते हैं। हम प्यार करते हुए भी सच को, गंदगी को, अँधेरे को, पाप को भूल नहीं पाते हैं। कविता हमारे लिए भावनाओं का मायाजाल नहीं है। जिनके लिए कविता ऐसी थी, वे लोग बीत चुके हैं।
जब कोई लेखक लिखता है कि ‘वह गली को पड़ोसी नहीं कह सकता’ तब स्पष्ट लगता है कि वह कविता का मुहावरा चुराकर बोल रहा है। जासूस आलोचक के लिए यहाँ काफ़ी मसाला है, वह कहानी के ऐसे मुहावरों की जासूसी करता हुआ असली अपराधी की खोज कर सकता है।
यह पुस्तक विधिवत् लिखी गई पुस्तक नहीं है। यह पिछले छह दशकों से अशोक वाजपेयी के द्वारा कविता के बारे में समय-समय पर जो सोचा-गुना-लिखा गया, उसका पीयूष दईया द्वारा सुरुचि और सावधानी से किया गया संचयन है।
लोग भूल जाएँगे कि तुमने क्या कहा था, लोग भूल जाएँगे कि तुमने क्या किया था, लेकिन लोग कभी नहीं भूलेंगे कि तुमने उन्हें कैसा महसूस कराया था।
लेखक को यह नहीं भूलना चाहिए कि कुछ प्रश्न सार्वभौमिक होते हैं, कुछ निजी और कुछ राष्ट्रीय। वह किसी भी प्रश्न से कतरा नहीं सकता। जब तक प्रश्न है, तभी तक साहित्य है।
साहित्य के मर्म को समझने का अर्थ है—वास्तव में मानव-जीवन के सत्य को समझना। साहित्य अपने व्यापक अर्थ में मानव-जीवन की गंभीर व्याख्या है।
छोटे स्वार्थ निश्चय ही मनुष्य को भिन्न-भिन्न दलों में टुकड़े-टुकड़े कर रहे हैं, परंतु यदि मनुष्य चाहे तो ऐसा महासेतु निर्माण कर सकता है, जिससे समस्त विच्छिन्नता का अंतराल भर जाए।
सभी जानते हैं कि दुनिया में बार-बार महामारियाँ फैलती रहती हैं, लेकिन जब नीले आसमान को फाड़कर कोई महामारी हमारे ही सिर पर आ टूटती है तब, न जाने क्यों, हमें उस पर विश्वास करने में कठिनाई होती है।
कला कैलेंडर की चीज़ नहीं है। वह कलाकार की अपनी बहुत निजी चीज़ है। जितनी ही अधिक वह उसकी अपनी निजी है, उतनी ही कालांतर में वह औरों की भी हो सकती है—अगर वह सच्ची है, कला-पक्ष और भाव-पक्ष दोनों ओर से। वह ‘अपने-आप’ प्रकाशित होगी। और कवि के लिए वह सदैव कहीं न कहीं प्रकाशित है—अगर वह सच्ची कला है, पुष्ट कला है।
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