दिल्ली एक हृदयविदारक नगर है

असद ज़ैदी की कविताओं के बनने की प्रक्रिया एकतरफ़ा नहीं है। आप उसे जितनी बार पढ़ेंगे, वह आपके अंदर फिर से बनेगी और अपनी ही सामग्री में से हर बार कुछ नई चीज़ों की आपको याद दिलाएगी कि आप उन्हें अपने यहाँ खोजें—और वे आपके यहाँ पहले से मौजूद या तुरंत तैयार मिलेंगी।

संतृप्त मनोवेगों का संसार

एक स्त्री के लिए एकांत में लौटना रात्रि में लौटना ही हो सकता है। क्योंकि मर्दाना सूर्य उसके रहस्य का दुश्मन है। इसीलिए महादेवी वर्मा के यहाँ रात्रि की अनगिनत छवियाँ और सुगंधियाँ हैं, लेकिन मध्याह्न खोजे नहीं मिलता। मोनिका को रात्रि भी कैसी चाहिए—चाँदनी जिसमें बरस जाए। ऐसी रात्रि नहीं जो आत्मविस्मरण लाए, ऐसी रात्रि चाहिए जो चाँदनी की तरह बरस जाए, जो उज्ज्वल सौंदर्य की अनुभूति दे, और जिसे वह फूलों की तरह चुन सकें।

दुश्मनी जम कर करो लेकिन…

मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि यह टिप्पणी मैंने जनवादी लेखक संघ के ख़िलाफ़ नहीं, बल्कि उस किताब के संकलनकर्ताओं द्वारा की गई विसंगतियों को लेकर की है। मैंने व्यक्तिगत रूप से अपने विचार व्यक्त किए हैं, न कि प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में।

उर्दू सीखने की तमन्ना है तुम्हें, अभी सीन में RULG के सिवा कुछ भी नहीं

उर्दू समय के साथ-साथ हिन्दवी, ज़बान-ए-हिंद, गुजरी, दक्कनी, ज़बान-ए-दिल्ली, ज़बान-ए-उर्दू-ए-मुअल्ला, हिंदुस्तानी और रेख़्ता जैसे नामों से भी जानी-पहचानी गई। व्याकरण और ध्वनि में हिंदी से बहुत निकटता रखने वाली उर्दू का शब्द-संसार अरबी, फ़ारसी, तुर्की, ब्रज और संस्कृत से समृद्ध हुआ है।

पुरानी उदासियों का पुकारू नाम

एक साहित्यिक मित्र ने अनौपचारिक बातचीत में पूछा कि आप महेश वर्मा के बारे में क्या सोचते हैं? मेरे लिए महेश वर्मा के काव्य-प्रभाव को साफ़-साफ़ बता पाना कठिन था, लेकिन जो चुप लगा जाए वह समीक्षक क्या! मैंने कहा कि मुझे लगता है : पीछे छूट चुकी धुँधली-सी चीज़, वह कुछ भी हो सकती है; छाता हो सकता है, पिता, टार्च या किसी निष्कवच क्षण की कोई नितांत मौलिक परंतु निरर्थक अनुभूति हो सकती है… वह उन्हें अश्रव्य आवाज़ में पुकारती है—हे… महेश! और महेश चौंक पड़ते हैं।

जनवाद और साहित्य की तिजारत

आप अपने इर्द-गिर्द भी नज़र दौड़ाएँगे तो जनवाद और प्रगतिशीलता के नाम पर ‘अपनी तरक़्क़ी’ करने वाले असंख्य महारथी मिल जाएँगे।

कविता की बुनियादी ताक़त का संग्रह

हरे प्रकाश की कई कविताओं को पढ़कर कहीं-कहीं मुक्तिबोध और धूमिल की कविताई की याद भी आ जाती है। कुछ कविताओं में धूमिल जैसी ही छीलती-छेदती प्रश्नात्मकता, देश और समाज का गिरहबान पकड़कर उसकी आँखों में आँखें डालने वाला काव्य तेवर, रचनात्मक साहस दिखाई देता है।

नामवर सिंह की कहानी-आलोचना के अंतर्विरोध और नई कहानी

नई कहानी के दौर में पहली बार कहानी-आलोचना को एक गंभीर विषय के रूप में समझा गया। यह नई कहानी का ही दौर था, जब विभिन्न काव्य-आंदोलनों की तरह कहानी की रचना और पाठ की प्रक्रिया पर गंभीर ‘वाद-विवाद और संवाद’ हुआ। नई कहानी के दौर के बाद कहानी-आलोचना एक बार फिर से हाशिए पर चली गई। कमोबेश यह स्थिति आज भी विद्यमान है।

कवित्व का निराला विवेक

भावुक कविताएँ चिल्लर संवेदना की अपेक्षा रखती हैं : दाता मुक्त, याचक ख़ुश। दोनों की अवस्थिति यथास्थिति बनी रहती है।

निर्वासितों का जनपद

हिंदी कविता में बहुत से राजकुमार आते हैं। थोड़ी देर स्तुति, संस्तुति, सम्मान के आलोकवृत्त में चमकते हैं। भ्रमवश इस चौंध को अपना आत्मप्रकाश समझ लेते हैं। परंतु हिंदी कविता के पाठक बहुत बेवफ़ा हैं। कुछ दिनों तक यह सब देखते हैं, और कविता न मिलने पर छोड़ जाते हैं।

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