निर्वासितों का जनपद
हिंदी कविता में बहुत से राजकुमार आते हैं। थोड़ी देर स्तुति, संस्तुति, सम्मान के आलोकवृत्त में चमकते हैं। भ्रमवश इस चौंध को अपना आत्मप्रकाश समझ लेते हैं। परंतु हिंदी कविता के पाठक बहुत बेवफ़ा हैं। कुछ दिनों तक यह सब देखते हैं, और कविता न मिलने पर छोड़ जाते हैं।