जनवाद और साहित्य की तिजारत
आप अपने इर्द-गिर्द भी नज़र दौड़ाएँगे तो जनवाद और प्रगतिशीलता के नाम पर ‘अपनी तरक़्क़ी’ करने वाले असंख्य महारथी मिल जाएँगे।
अच्छी कहानी वही है दोस्तों जिसके किरदार कुछ अप्रत्याशित काम कर जाएँ। इस प्रसंग से यह सीख मिलती है कि नरेशन अच्छा हो तो झूठी कहानियों में भी जान फूँकी जा सकती है। यह भी कि अगर आपके पास कहानी है तो सबसे पहले कह डालिए।
आप अपने इर्द-गिर्द भी नज़र दौड़ाएँगे तो जनवाद और प्रगतिशीलता के नाम पर ‘अपनी तरक़्क़ी’ करने वाले असंख्य महारथी मिल जाएँगे।
गोविंदा ऐसा नहीं था, क्योंकि उसका दौर ऐसा नहीं था। आप अपने दौर के असर से बच नहीं सकते। उसकी अच्छाइयाँ आपको गढ़ती हैं और बुराइयाँ भी। यह इस प्रकार होता है कि बहुत सजगताएँ भी इसे बेहद देर से जान पाती हैं।
राजूसिंघ आकर मेरी नींद का बेरी बना। दुपहर हो चुकी थी। देर रात तक जागता रहा था, इसलिए बहुत देर तक सोता रहा था। राजूसिंह अपने घर से तसला भर विश्नान लाया था मेरे लिए और उसे जल्द खाकर तालाब में नहाने चलने की हिदायत दे रहा था।
यह नब्बे के दशक की बात है। 1994-95 के आस-पास की। हम राजस्थान विश्वविद्यालय में पढ़ा करते थे। साहित्य में रुचि रखने वाले हम कुछ दोस्तों का एक समूह जैसा बन गया था। इस समूह को हमने ‘वितान’ नाम दिया था।
हरे प्रकाश की कई कविताओं को पढ़कर कहीं-कहीं मुक्तिबोध और धूमिल की कविताई की याद भी आ जाती है। कुछ कविताओं में धूमिल जैसी ही छीलती-छेदती प्रश्नात्मकता, देश और समाज का गिरहबान पकड़कर उसकी आँखों में आँखें डालने वाला काव्य तेवर, रचनात्मक साहस दिखाई देता है।
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