कल कुछ कल से अलग होगा
आलोकधन्वा के कविता-संसार की कल्पना स्त्रियों के बग़ैर नहीं की जा सकती। वह हिंदी में स्त्री-विमर्श के एक प्रतिनिधि और सशक्त कवि हैं। माँ पर कविता लिखते हुए आलोकधन्वा को एक पूरा ज़माना याद आता है।
अच्छी कहानी वही है दोस्तों जिसके किरदार कुछ अप्रत्याशित काम कर जाएँ। इस प्रसंग से यह सीख मिलती है कि नरेशन अच्छा हो तो झूठी कहानियों में भी जान फूँकी जा सकती है। यह भी कि अगर आपके पास कहानी है तो सबसे पहले कह डालिए।
आलोकधन्वा के कविता-संसार की कल्पना स्त्रियों के बग़ैर नहीं की जा सकती। वह हिंदी में स्त्री-विमर्श के एक प्रतिनिधि और सशक्त कवि हैं। माँ पर कविता लिखते हुए आलोकधन्वा को एक पूरा ज़माना याद आता है।
दोस्त को भूल जाना दुःख की बात है।
जीवन इतना जटिल कभी नहीं था। अभी तक मन उदास था। अब जीवन उदास लगता है। अंजान दुःख घेरे हुए हैं—जैसे : किसी ने एक जगह खड़ा करके बॉक्स से ढक दिया है, और उस बॉक्स पर बड़ा-सा पत्थर रखकर भूल गया है।
अकेले रहने की आदत किसी नशे की तरह है। आस-पास लोग होते हैं तो अपना स्व छिलके की तरह उघड़ जाता है। फ़िट न हो पाने की कशिश आत्मा को बीमार करती है।
हम नफ़रत करते हुए भी, प्यार करते हैं। हम प्यार करते हुए भी सच को, गंदगी को, अँधेरे को, पाप को भूल नहीं पाते हैं। कविता हमारे लिए भावनाओं का मायाजाल नहीं है। जिनके लिए कविता ऐसी थी, वे लोग बीत चुके हैं।
आपको नियमित अपडेट भेजने के अलावा अन्य किसी भी उद्देश्य के लिए आपके ई-मेल का उपयोग नहीं किया जाएगा।