यह भूमि माता है, मैं पृथिवी का पुत्र हूँ
आज लोक और लेखक के बीच में गहरी खाई बन गई है, उसको किस तरह पाटना चाहिए; इस पर सब साहित्यकारों को पृथक-पृथक और संघ में बैठकर विचार करना आवश्यक है।
अच्छी कहानी वही है दोस्तों जिसके किरदार कुछ अप्रत्याशित काम कर जाएँ। इस प्रसंग से यह सीख मिलती है कि नरेशन अच्छा हो तो झूठी कहानियों में भी जान फूँकी जा सकती है। यह भी कि अगर आपके पास कहानी है तो सबसे पहले कह डालिए।
आज लोक और लेखक के बीच में गहरी खाई बन गई है, उसको किस तरह पाटना चाहिए; इस पर सब साहित्यकारों को पृथक-पृथक और संघ में बैठकर विचार करना आवश्यक है।
एक अलग रास्ता पकड़ने वाले वीरेन डंगवाल (1947–2015) की आज जन्मतिथि है। हिंदी की आठवें दशक की कविता ने स्वयं को कहाँ पर रोका यह समझना हो तो मंगलेश डबराल को पढ़िए और वह कहाँ तक जा सकती थी यह समझना हो तो वीरेन डंगवाल को।
उर्दू समय के साथ-साथ हिन्दवी, ज़बान-ए-हिंद, गुजरी, दक्कनी, ज़बान-ए-दिल्ली, ज़बान-ए-उर्दू-ए-मुअल्ला, हिंदुस्तानी और रेख़्ता जैसे नामों से भी जानी-पहचानी गई। व्याकरण और ध्वनि में हिंदी से बहुत निकटता रखने वाली उर्दू का शब्द-संसार अरबी, फ़ारसी, तुर्की, ब्रज और संस्कृत से समृद्ध हुआ है।
हर व्यक्ति अपने से कमज़ोर व्यक्ति पर अपना रोब, घमंड, ताक़त दिखाकर अपने शक्तिशाली होने के भ्रम-अहं को संतुष्ट करता है। अपने से कमज़ोर के मुक़ाबले अपनी श्रेष्ठता साबित करना, सशक्तता दिखाना न मात्र मानवीय चरित्र है, अपितु प्राणी मात्र का यही चरित्र है।
उन्होंने समय-समय पर हम पर इतने उपकार किए हैं कि उनकी चर्चा चलने पर हम चुप रहते हैं। हम उनकी तारीफ़ तो कर सकते हैं, बुराई नहीं कर सकते। हम उनकी बुराई करना तो दूर, सुन भी नहीं सकते।
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