साथ एक बड़ी चीज़ है
ये बातें अगर अपने बचपन के साथियों या माता-पिता से कहूँगा, तब वे इन पंक्तियों को सिर्फ़ पंक्तियों की तरह पढ़ेंगे या सुनेंगे नहीं। उनके अपने अनुभव और संवेदनाएँ उनके साथ जुड़ती जाएँगी। हो सकता है, जिसका आपकी दृष्टि में कोई मूल्य न हो पर जिसने वह वक़्त जिया है, जो उसका साक्षी रहा है, जिसके अनुभव में वे दिन आए हैं, उसके लिए यह बात बहुत भावुक कर जाने वाली गली की तरह खुलता हुआ रास्ता हो सकती है।