विचारों में कितनी भी गिरावट हो, गद्य में तरावट होनी चाहिए

अच्छी कहानी वही है दोस्तों जिसके किरदार कुछ अप्रत्याशित काम कर जाएँ। इस प्रसंग से यह सीख मिलती है कि नरेशन अच्छा हो तो झूठी कहानियों में भी जान फूँकी जा सकती है। यह भी कि अगर आपके पास कहानी है तो सबसे पहले कह डालिए।

इच्छाएँ जब विस्तृत हो उठती हैं, आकाश बन जाती हैं

मैं उन दुखों की तरफ़ लौटती रही हूँ जिनके पीछे-पीछे सुख के लौट आने की उम्मीद बँधी होती है। यह कुछ ऐसा ही है कि जैसे समंदर का भार कछुओं ने अपनी पीठ पर उठा रखा हो और मछली के रोने से एक नदी फूट पड़ेगी—सागर में।

‘मैं अपने लिखे में हर जगह उपस्थित हूँ’

विनोद कुमार शुक्ल से महेश वर्मा की बातचीत

स्मृति को मैं जीने के अनुभव के ख़ज़ाने की तरह मानता हूँ, आगे की ज़िंदगी ख़र्च करने के लिए इसकी ज़रूरत है। अगर भूलने से काम रुकता है, तो परेशानी होती है। जैसे चावल ख़रीदने घर से निकले, दुकान पहुँचे तो मालूम हुआ जेब में पैसे नहीं हैं। रचनात्मकता में भूलना सहूलत है।

इक्कीसवीं सदी की स्त्री-कविता

हिंदी में उपस्थित स्त्री-कविता का यह स्वर्णकाल है। इस संभव-साक्ष्य को पाने के लिए हमारी भाषा बेहद संघर्ष करती रही है। स्त्री कवियों की संख्या का विस्तार अब इस क़दर है कि उन्होंने पूरे काव्य-दृश्य को ही अपनी आभा से आच्छादित किया हुआ है।

‘तथता’ के रास्ते ‘इयत्ता’ की खोज

यह कथा अलग-अलग तरीक़ों से सुनाई जाती रही है। तरह-तरह के विद्वानों ने इस कथा के श्रोत/तों की ओर इशारा किया है, पर हमारे सामने सवाल इस कथा की अनुवांशिकी खोजने का नहीं है। सवाल यह है कि एक कथा कविता में कैसे बदलती है? क्यों बदलती है?

राजनीतिक हस्तक्षेप में उनका विश्वास था

फणीश्वरनाथ रेणु की विचारधारा उनकी भावधारा से बनी थी। उन्हें विचारों से अपने भावजगत की संरचना करने की विवशता नहीं थी। यही कारण था कि वह अमूर्त से सैद्धांतिक सवालों पर बहस नहीं करते थे। उनके विचारों का स्रोत कहीं बाहर—पुस्तकीय ज्ञान में—न था।

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